क्या ढूंढ रहे इस दुनिया में !
जब सब कुछ तेरे भीतर है !!
क्यों बैठा है तू पिंजरे में!
जब आज़ाद गगन का तीतर है !!
ये गगन तुम्हारी मंजिल है !
एक साहस भरी उड़ान दिखा !
अब तोड़ दे हर जंजीरों को !
तू खुद की एक पहचान दिखा !!
क्या देख रहा है औरों में!
तेरा मन ही सच्चा दर्पण है !
अब इधर उधर से ध्यान हटा !
तेरा लक्ष्य की ओर समर्पण है !!
तू कोशिश कर और करता जा!
मन में मंज़िल की चित्र बना !
गर आलस्य तुम्हारा दुश्मन है !
पुरुषार्थ को अपना मित्र बना !!
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