गीता सड़क पर सोती है चित्तरंजन एवेन्यू के माधव भवन के नीचे रात गुजरती है वहां और भी बहुत सारे व्यक्ति डेरा डाले पड़े रहते है वे रोज इधर - उधर कूड़ा - कर्कट चुनते है दस - बीस रूपये कमा लेते है उनकी कोई जाति - पांति नहीं है कोई उम्र नहीं है कोई मजहब नहीं वे मिलकर दिन गुजारते हैं गीता सुबह इंद्रमहल मद्रासी रेस्त्रान में बर्तन साफ कर आती है वहां उसे नाश्ता - पानी मिल जाता है अगल - बगल की गलियों - सड़कों पर चक्कर लगाती है जो कुछ रद्दी मिलती है उसे अपने बोरे में भर कबाड़ी को दे आती है काम चल रहा है देखते ही देखते गीता गर्भवती हो गई है पता नहीं कौन है उस बच्चे का बाप ओर बच्चा उसका है फुटपाथ पर ही प्रसव हो जाता है वह बेटे की माँ बनी है उसमें रम गई है भूल गई है दुख देखते हैं आसपास के लोग भौंचक - से कैसे बच्चे को अच्छा आदमी बनाएगी उसे रद्दी चुनने नहीं देगी वह नहीं सोने देगी फुटपाथ पर हालांकि उसके सिर पर पति का हाथ नहीं है। धन्यवाद