माता - पिता हर बच्चे के प्रथम गुरु होते है। हर बच्चे के विकास में माता - पिता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।बच्चे का परवरिश करना एक सुंदर एवं चुनौतिपूर्ण यात्रा है। स्वामी विवेकानंद जी, महात्मा गाँधी, विद्यालय इत्यादि जैसे साधारण से असाधारण मानव बनने में उनके माता - पिता की अहम भूमिका थी।
आज इस निबंध के माध्यम से हम यह जानने का प्रयत्न करेंगे कि आप अपने बच्चों को एक कैसे एक बेहतरीन भविष्य दे सकते है। छोटे बच्चे गीली मिट्टी के समान होते है, और पेरेंट्स कुम्हार। गीली मिट्टी को जैसा आकार दिया जाएगा.. वह मिट्टी उसी आकार में परिवर्तित हो जाएगा।
चलिए जानते है महत्वपूर्ण सुझाव माता - पिता के लिए।
1. अनुकूल : बच्चों के परवरिश के लिए सुंदर, सुरक्षित, सार्थक एवं सकारात्मक से भरा अनुकूल वातावरण का होना अनिवार्य है। अनुकूल वातावरण हेतु अपने स्थान को साफ रखे, माता - पिता को आपसे में लड़ना नहीं चाहिए। इसका प्रभाव बच्चों पर नकारात्मक रूप से पड़ता है। दुखमय, निराशापूर्ण वातावरण में अगर बच्चों का परवरिश होता है, तब उसी की तरह आचरण आगे भी हो जाता है। इसलिए यह अनिवार्य है कि हर माता - पिता का परम कर्तव्य है कि अपने बच्चों को सार्थक, सुन्दर एवं सुरक्षित वातावरण प्रदान करें।
2. समय : आज के दौर में देखा जाता है कि माता - पिता दोनों ही कार्य करते है। जिसकी वज़ह से वे अपना ज्यादा समय बच्चों को नहीं दे पाते है। माता - पिता के आभाव में बच्चों में क्रोध, नफ़रत, घृणा इत्यादि से भाव पनपे लगते है। जिसका व्यापक प्रभाव उनके मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। इसलिए जरुरी है कि माँ के साथ पिता को भी अपने बच्चों के साथ समय बिताना चाहिए। बच्चों के साथ क्वालिटी समय बिताएं।खेलें, बातचीत करें और उनकी मनपसंद गतिविधियों में हिस्सा ले।
बच्चों को समय देने के साथ उनकी बातों को सुने। अधिकांश माता - पिता अपने बच्चों को चुप रहने के लिए हमेशा कहते है। जिससे आगे चलकर वह बच्चा बोलने हिचकिचाता है। अपनी बातों को दूसरे के समक्ष रखने से डरता है। बड़ा / बड़ी हो जाने पर पेरेंट्स से खुलकर बात नहीं कर पाता / पाती है। इसलिए हर पेरेंट्स को अपने बच्चों की बात ध्यान स्वागत सुनना चाहिए।उनकी भावनाओं को समझे। जिससे बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ेगा।
4. अनुशासन : सफलता तक पहुँचने के लिए महत्वपूर्ण सीढ़ियों में अनुशासन सबसे महत्वपूर्ण है। अधिकांश व्यक्ति इसलिए सफल नहीं हो पाते है, क्युकी उनमें अनुशासन का आभाव रहता है। वे हर कार्य को कल पर टालते है, आलस्य करते है इत्यादि।
लेकिन जब पेरेंट्स आरम्भ से बच्चों को अनुशासन की सीख प्रेम से दें। उनकी गलतियों को समझाये और उन्हें सुधारने का मौका दे.. तब उस बालक का चरित्र धीरे - धीरे अनुपम बनने लगेगा। व्यक्ति के चरित्र निर्माण से राष्ट्र निर्माण होता है, इसलिए यह अनिवार्य है कि टीचर्स के साथ माता - पिता को मुख्य रूप से बच्चों को अच्छी आदतें सीखानी चाहिए।
अनुशासन की महत्वपूर्ण बातें :
#अत्यधिक : किसी भी चीज का अति होना घातक होता है। अधिकांश माता - पिता अपने बच्चों के हर इच्छाओं को पूर्ण करने का प्रयत्न करते है। वह इच्छाएं अनावश्यक भी हो सकती है। लेकिन पेरेंट्स को अपने बच्चों से बेहद प्रेम रहता है, इसलिए उनकी हर इच्छाओं को जल्दी - जल्दी पूर्ण कर देते है। इसे धीरे - धीरे बच्चें मेहनत करने से दूर हटते है, समाग्री की कद्र नहीं करते है। मैं आपसे यह नहीं कह रही हूं कि आप अपने बच्चों को आधा खान खाने के लिए दीजिये, बच्चों के इच्छाओं को पूर्ण नहीं कीजिये। लेकिन किसी भी चीज का अति घातक होता है। बच्चों को महत्वपूर्ण प्रतियोगिता जितने के बाद, यह कार्य करने के बाद उसे के पुरस्कार के रूप में प्रदान कीजिये। जिससे उस बच्चें में जीतने की ललक, सीखने की प्रबल इच्छा एवं आगे बढ़ने का जूनून ललकता से बढ़ेगा।
# सीमा : बच्चों के लिए अत्यधिक सीमा निर्धारित ना करे। लेकिन बच्चों को स्पष्ट सीमाएं बताएं और उनको पालन करने के लिए उन्हें प्रेरित करे।
5. सकारात्मक : क्या आप जानते है? बच्चें नक़ल करते है? जी हाँ! एक आदर्श नागरिक केवल किताब पढ़ने से कोई नहीं बन जाता है। आदर्श व्यक्ति / नागरिक बनने के लिए व्यक्ति में नैतिक मूल्य गुण, सदाचार व्यवहार एवं कुशल संस्कार का होना अनिवार्य है। इन सभी की महत्वपूर्ण शुरुआत बच्चों के घर से होती है। पेरेंट्स के माध्यम से दी जाने वाली नैतिक शिक्षा, कुशल संस्कार इत्यादि बच्चों को मिलते है। पेरेंट्स को हमेशा अपने बच्चों के लिए एक सकारात्मक रोल मॉडल बनना चाहिए। नरेन्द्र से स्वामी जी विवेकानंद इसलिए बन पाए क्युकी उनका संस्कार, नैतिक मूल्य, सदाचार इत्यादि गुण सर्वोपरी था। मोहन से महात्मा बनने का सफर गाँधी जी का नैतिक मूल्य, संस्कार, सदाचार इत्यादि उनके पेरेंट्स के माध्यम से मिला। इसलिए स्वामी जी , महात्मा गाँधी जी इत्यादि महामानव ने अपने पेरेंट्स को सकारात्मक रोले मॉडल मानते थे।
फैमिली में लड़ना, गलत शब्दों का उपयोग, मारना - पीटना इत्यादि बुरे क्रियाओं का प्रभाव बच्चों पर बहुत नकारात्मक रूप से पड़ता है। इसलिए अनिवार्य है कि हर पेरेंट्स बच्चों के सामने सकारात्मक व्यवहार करें।
6. आदतें : पहले आप अपनी आदत चुनते है और चुनी हुई आदतें ही आपको सफल या असफल बना सकती है।अच्छी आदतों को अपनाकर व्यक्ति हमेशा ऊंचाइयों की ओर बढ़ता है। लेकिन बुरी आदतें मनुष्य को धीरे - धीरे क्षय कर देती है।बच्चें का भविष्य निखरेगा या बिखेरेगा यह उसकी आदतें तय करती है।हर माता - पिता का परम् एवं महत्वपूर्ण कर्तव्य होना चाहिए कि वे अपने बच्चों को अच्छी आदतें सिखायें।अगर गीली मिट्टी को सही आकार दिया जाये तभी उस कुम्हार की प्रशंसा होंगी। इसलिए बच्चों को महत्वपूर्ण आदतें सिखाये। जैसे : सुबह जल्दी उठना, अपना कार्य स्वयं से करना,गलत शब्दों से दूर, 7धैर्य इत्यादि महत्वपूर्ण हैबिटस जरूर सिखाये।
7.स्वंतत्र : बालगंगा तिलक ने कहा था " स्वराज हमारा जन्मसिद्धि अधिककार है।माता - पिता अपने बच्चों पर हर छोटी - छोटी कार्य के उन्हें बुरा - भरा ना बोले। बच्चों मी रुचियों जी समझे, बच्चों से दोस्ती करे इत्यादि।
यह कुछ महत्वपूर्ण टिप्स है। आज के बच्चें जी कल के भविष्य है।राष्ट्र निर्माण तभी हो पायेगा जब हर व्यक्ति का व्यक्तित्व निर्माण होगा।
धन्यवाद
काजल साह
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