अधिकांश लोगों के साथ यह समस्या होती है कीवी आस-पास वालों के कहने पर अधिकतर कार्य करते हैं। ऐसी स्थिति में वे अपने आप की भी नहीं सुनते। उदाहरण स्वरूप यदि आपकी रूचि धार्मिक कार्यों में है, आपको आध्यात्मिक पसंद है, पर मन में या डर रहता है कि कहीं लोगों के बीच आप का मजाक ना बन जाएँ, आप अपनी स्वयं की रूचि को ही नजरअंदाज कर देते हैं और इसी कारण आप मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे चर्च भी नहीं जाते। ब्रिटिश मनोवैज्ञानिक तथा अध्यात्म विशेषज्ञों की वेबसाइट मैं अपने विश्लेषण में कहा है कि ऐसी चीजें आपको उन गतिविधियों से दूर करती हैं, जिनका वास्तव में आप अनुभव करना चाहते हैं। आज युवाओं में भी अक्सर देखने को मिलता है कि स्वीकार ना किए जाने के डर से जो काम करना चाहते हैं, वही नहीं कर पाते उन्हें इस बात की चिंता अधिक रहती है कि उनकी दोस्त क्या सोचेंगे।
यही सोच आपको खुशियों से दूर करती हैं। आप वह करें जो आपको खुशी दे और आप खुद पर गर्व महसूस कर सकें। या कोई मायने नहीं रखता है कि आप उस काम में सफल हुए या असफल बल्कि सबसे बड़ी बात यह है कि आप अपने बनाए रास्ते पर चल रहे हैं, ना कि दूसरे के बनाए रास्ते पर। इस रास्ते पर मजबूती के साथ आगे बढ़ते हुए ही आप खुशी पा सकते हैं। दूसरों को सुनने में व्यस्त रहेंगे तो स्वयं की सुनना भूल जाएंगे।
जिंदगी आपकी है, आप अपने फैसले खुद लेना सीखें। ऐसा करने पर आपका परिवार और आपके अधिकांश दोस्त आपके फैसले की कद्र करेंगे, क्योंकि यह फैसले आपके स्वयं के हैं और आपने अपने मन की सुनी है। बड़ी बात यह है कि आपने अपनी खुशियों की खातिर ऐसा किया है। यदि आपने कोई गलत फैसला आया चुनाव कर लिया तो भी इसका यह मतलब नहीं है कि इससे आप गैर जिम्मेदार और बिगडैल व्यक्ति हो जाएंगे और कुछ सीखने को नहीं मिलेगा। व्यक्ति अपने हर अनुभव से कुछ ना कुछ सीखता है। यह मायने नहीं रखता कि आपने क्या चुना है, आप उसे आकार दीजिए जो बनना चाहते हैं बनिए। इस बात पर शर्मिंदा ना हो कि आप कौन हैं क्या करते हैं आपकी पहचान क्या है? आप जो है उस पर गर्व करें। अपने काम को जिम्मेदारी पूर्वक करें। इससे ना केवल आप अपना विकास करेंगे बल्कि एक समझदार व्यक्ति के रूप में परिपक्व होंगे। ऐसे में किसी एक मकसद में कामयाब नहीं होने पर आपको सफलता का अहसान नहीं होगा क्योंकि उससे भी आप कुछ ना कुछ अवश्य सीखेंगे। जीवन में होने वाली गलतियों और असफलताओं से सीख लेकर ही कोई व्यक्ति बुद्धिमान बनता है। आप भी इसी बुद्धिमता से जीवन जीना सीख जाएंगे। अब आपको यह निर्धारित करना है कि आप खुद की सुनना चाहते हैं या दुनिया की। अब तक यदि आप दूसरों की सुनते आए हैं तो आप एक बार खुद की सुन कर देखिए शायद आपका दिन पहले से कुछ बेहतर हो जाए, इस बात पर विचार जरूर करें।
हाँ! कहने की अनुभूति है संतोष
वह व्यक्ति जो स्वस्थ है, निर्भर, ताजा, युवा, कुंवारा अनुभव करता है। वही समझ पाएगा कि संतोष क्या है? अन्यथा तो तुम कभी ना समझ पाओगे कि संतोष क्या होता है। या केवल एक शब्द बना रहेगा।
संतोष का अर्थ है जो कुछ सुंदर है। अनुभूति कि जो कुछ भी श्रेष्ठतम है, इससे बेहतर संभव नहीं। गहन स्वीकार की अनुभूति है संतोष । संपूर्ण अस्तित्व जैसा है उसके प्रति हां कहने की अनुभूति है संतोष। साधारण का मन कहता है " कुछ भी ठीक नहीं है, साधारणतया शिकायत खोजता ही रहता है। यह गलत है वह गलत है।साधारणतया मन इंकार करता है। वह न कहने वाला होता है। वहीं सरलता से कह देता है, मन के लिए हां कहना बड़ा कठिन है क्योंकि जब तुम कहते हाँ हो तो ठहर जाता है,तब मन की कोई जरूरत नहीं होती। क्या तुमने ध्यान दिया है इस बात पर? अंत नहीं होता। नहीं क्या दे कोई। नहीं नहीं है, वह तो एक शुरुआत है। नहीं यह शुरुआत है, हाँ अंत है।
जब तुम हां कहते हो तो एक पूर्णविराम आ जाता है। अब मन के पास सोचने के लिए कुछ नहीं रहता, बड़बड़ाने - कुनमुनाने के लिए, खींझने के लिए, शिकायत के लिए, कुछ नहीं रहता, कुछ भी नहीं रहता। जब तक हाँ कहते हो तो मन ठहर जाते हैं।यह स्मरण रहे। मन का ठहरना ही संतोष है। संतोष कोई सांत्वना नहीं है। यह स्मरण रहे हैं। हमने बहुत से लोग देखे हैं, जो सोचते हैं कि वे संतुष्ट है क्योंकि वे तसल्ली दे रहे हैं स्वयं को। संतोष सांत्वना नहीं, सांत्वना एक खोटा सिक्का है।
धन्यवाद
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