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कविता : खींची गई लक्ष्मण रेखा
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खींची गई है लक्ष्मण रेखा,
मेरे सपनों को मार कर
छा गया है अंधेरा,
मेरे दुखों को देखकर।
ना निकल पाऊंगी मैं
कभी लक्ष्मण रेखा से?
दर्द को घुट - घुट कर पी जाऊंगी
इस चारदीवारी में....
किसी नें नहीं समझा, मेरी बातों को
और बंद कर दिया मुझें
चारदीवारी में।
चाह पढ़ने की थी पर,
ना कर पाई अपनी चाहत को पूरा।
इच्छा जाहिर की तो
बंद कर दिया मुझें
चारदीवारी में।
घुट - घुट के रों रही है
जिंदगी मेरी
अपनें माँ - बाप की सोच को देखकर
खींची गई लक्ष्मण रेखा
मेरे सपनों को मार कर।
धन्यवाद : काजल साह :स्वरचित
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