क्या आप मुझे बता सकते है? सबसे गतिमान कौन है? शायद आपकी नज़र में कोई व्यक्ति, कोई पशु इत्यादि हो सकता है। लेकिन इसका सटीक उत्तर है.. मन सबसे गतिशील अर्थात चंचल है।
आज मानव सुई से लेकर चाँद तक अपने मजबूत मानसिकता के कारण ही पहुँच पाए। मजबूत मानसिकता कड़ी मेहनत, जूनून, दृढ़ इच्छाशक्ति देती है। अगर आप शारीरिक रूप से कितने भी मजबूत, आकर्षण क्यों ना रहे? लेकिन जब तक आपका माइंडसेट अर्थात जब तक आप आपका कण्ट्रोल अपने मन पर नहीं होगा.. तब तक आप कभी भी ऊंचाइयों तक पहुँच सकते है।
स्वामी विवेकानंद जी ने अपनी पुस्तक (व्यक्तिगत विकास )में उन्होंने लिखा.. मन को कण्ट्रोल बारम्बार -बारम्बार अभ्यास के माध्यम से किया जाता है। जब भी आपका मन भटकने लगे.. तब उससे फिर से अभ्यास करके अपने कार्य में केंद्रित करने का प्रयास करे।
आपको अपने मन का राजन बनना है.. जब आपका मन आपका राजन बन जाता है.. तब आपका क्षति होना आरम्भ हो जाता है। इसलिए मन को अपने वश में कीजिये।
आज मैं आपको बहुत महत्वपूर्ण टिप्स बताने वाली हूं.. जिससे आप अपने मन को अपने वश में कर सकते है। लेकिन अपने मन को कण्ट्रोल करने के लिए आपको निरंतर अभ्यास करने की आवश्यकता है।
1. आत्म जागरूकता : जब तक आप स्वयं के बारे में नहीं जानेंगे कि क्या आपको अच्छा लगता है.. क्या आपको नापसंद है इत्यादि। मन को कण्ट्रोल करने का पहला स्टेप है कि आप स्वयं को जाने। अपने विचारों को जाने कि आपका विचार कैसा है? नकारात्मक या सकारात्मक? आपका व्यवहार, आपका कार्य इत्यादि.. स्वयं के प्रति पहले आपको जागरूक होने की आवश्यकता है। आत्मनिरीक्षण के लिए आप अकेले किसी कमरे में जाये.. अपने कमियाँ से लेकर खूबियां इत्यादि लिखें।
चलिए उदाहरण से समझते है, मान लीजिये आप किसी मीटिंग में है, जहाँ एक सहकर्मी आपका श्रेय ले रहा है। आप गुस्सा से तिलमिला उठते है और कुछ तीखा बोलने का आग्रह महसूस करते है। यही वो क्षण है.. जहाँ आत्म -जागरूकता काम आती गया। अपने गुस्से को अपने ऊपर हावी होने के बजाय, एक गहरी सांस ले और अपने मानसिक स्थिति का विश्लेषण करे। क्या इस इस पर तुरंत प्रतिक्रिया देना जरुरी है? क्या बाद में शांत दिमाग़ से बात करना बेहतर होगा? इन सभी प्रश्नों का हल तब आप कर सकते है.. जब आप स्वयं के प्रति जागरूक होंगे।
2. विचार : स्वामी विवेकानंद जी ने अपनी पुस्तक (शिक्षा )में उन्होंने लिखा था.. कि मनुष्य का लक्ष्य इन्द्रियों को सुख पहुंचना नहीं होना चाहिए.. अपितु मनुष्य का अंतिम लक्ष्य ज्ञान प्राप्ति और ज्ञान को अपने जीवन में आत्मसात करना होना चाहिए।
जब भी हमारे मन में विचार आता है.. तब हम आँख मुंदकर विश्वास कर लेते है.. और उस कार्यों को करने लगते है। जो सही नहीं है। उदाहरण : मान लीजिये आपका महत्वपूर्ण एक कार्य है जैसी कि आपको स्कूल प्रोजेक्ट बनाने को मिला है.. आप मोबाइल में भेजे गए पीडीऍफ़ से लिख रहे है..लेकिन उसी समय एक नोटिफिकेशन आता है... न्यू सांग रिलीज़ (अक्षय कुमार) तब आप प्रोजेक्ट लिखना बंद करते है और 3 मिनट के स्थान पर आपका 3 घंटा बर्बाद हो जाता है।
ब्रुस ली जी ने कहा था - यदि अपने जीवन से प्रेम करते हो तो.. समय कभी बर्बाद न करे. क्युकी यह जीवन समय से ही बना है।इसलिए हर विचार अर्थात नकारात्मक विचारों पर आँख मुंदकर विश्वास न करे.. इन नकरात्मक विचारों को चैलेंज दे। जब भी नकारात्मक विचार आये तब इससे सकारात्मक से पराजय करने का प्रयास करे।स्वामी जी ने कहा था कि हर बुरी आदतों को मिटाने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है.. उसके विपरीत आदतें।
3. सकारात्मक आत्म-चर्चा : भगवान महावीर जी ने कहा था.. कि हम विचारों से निर्मित प्राणी है.. जैसा हम सोचते है.. वैसे हम बन जाते है। इसलिए यह बेहद जरुरी है कि आप हमेशा सकारात्मक सोचे और स्वयं से सकारात्मक रूप से बात करे। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि आपके आंतरिक संवाद का आपके मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जिस तरह से आप खुद से बात करते है, वह आपके विचारों और भावनाओं को आकार देता है स्वामी जी ने भी कहा था.. कि आप जैसा सोचते है.. वैसा बन जाते है। इसलिए स्वयं से सकारात्मक रूप से बात करे।
स्वामी जी के शब्दों में जिस मनुष्य ने स्वयं पर नियंत्रण कर लिया है, उस पर दुनिया की कोई भी चीज प्रभाव नहीं डाल सकती, उसके लिए किसी भी प्रकार की दासता शेष नहीं रह जाती।उसका मन स्वंतत्र हो जाता है और केवल ऐसा ही मनुष्य संसार में रहने योग्य है। इसलिए हमें अपने मन को संयमित करने की आवश्यकता है.. अन्यथा यह मन ही हमारा परम शत्रु भी बन सकता है। सारी ऊर्जा, सारे गुण, सकारात्मक विचारों इत्यादि को नकारात्मक मन दीमक के भांति सभी को क्षय कर सकता है। इसलिए मन में अपना संयम करने का प्रयास करे।
4. भावना : रोबोट और इंसान में प्रमुख अंतर है.. भावना जिससे हम इमोशन भी कहते है मनुष्य भावनात्मक प्राणी है। लेकिन कई बार यह भावना उनके लिए हानिकार भी बन जाती है।
अपनी भावनाओं को दबाना नुकसानदायक हो सकता है, लेकिन उन्हें अपने ऊपर हावी होने देना भी उतना ही हानिकारक है। भावनात्मक विनियमन का अर्थ है.. अपनी भावनाओं को स्वीकार करना लेकिन उन्हें स्वस्थ तरिके से व्यक्त करना।
5. अटूटता : पहले मेरा आप सभी से प्रश्न है कि क्या आपका मन पर कण्ट्रोल करना इच्छा है या संकल्प है। माफ़ कीजिये अगर आपका मन में संकल्प करना इच्छा है तो आप अपने मन में संयमित नहीं कर पाएंगे। मन में कण्ट्रोल करना इच्छा नहीं आपका संकल्प होना चाहिए। अटूट
संकल्प। आपको यह तय करना होगा कि आप वास्तव में अपनी बुरी आदत को त्यागना चाहते है। यह आदतें आपको धीरे -धीरे क्षय करते जा रही है। एक समय बाद पूर्ण रूप से भी कर सकती है। आधे -अधूरे मन से किया गए प्रयास विफलता की और ले जाएगा। इसलिए दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत.. निरंतर अभ्यास एवं प्रयास की शक्ति को अपनाकर ही आप अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते है।
" आँखों में जब अरमान लिया
मंजिल को अपना मान लिया
तब मुश्किल क्या.. आसान क्या
बस ठान लिया तो ठान लिया "
6. उद्देश्य :जीवन में जब उद्देश्य नहीं रहता है.. तब जीवन महत्वपूर्ण नहीं अपितु महत्वहीन बन जाता है। इसलिए अगर आपके जीवन में आपने गोल्स तय कर लिया है.. तब अपने आप को बार -बार याद दिलाएं कि आप इस बुरी आदत को छोड़ना चाहते है। जब भी मन आपके लक्ष्य से भटक कर दूर जाने लगे.. तब आपको अपने उद्देश्य.. अपनी पेरेंर्ट्स के सपने इत्यादि को याद दिलाने का प्रयास करना है।
8. बदलाव : एकदम से पूरी तरह से आप बदलाव नहीं कर सकते है। आप बुरी आदतों को दूर करने, मन पर अपना संयम करने के लिए आप छोटे -छोटे गोल्स निर्धारित करे... जिससे आप धीरे -धीरे प्राप्त कर सके। उदाहरण के लिए यदि आप ज्यादा भोजन करते है, तो पहले भोजन की मात्रा कम करने का प्रयास करे।
8. बड़ो : उपरोक्त टिप्स को अगर आप अपने जीवन में आत्मसात करते है.. तब आप अपने मन को कण्ट्रोल कर सकते है। यदि आवश्यक हो, तों मनोवैज्ञानिक या चिकित्सक से मदद ले। आपको सही से मार्गदर्शन भी कर पाएंगे।
आशा करती हूं कि आज के बताये हुए टिप्स आपके लिए कारगर हो सकता है। आप स्वयं पर विश्वास करे.. अपने शत्रु मन को मित्र में बदलने का पूरा प्रयास करे।
एक दिन जीत जरूर आपकी होंगी...
धन्यवाद
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